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शामें

ऐ शाम तू कैसी सी है

गर्म सूरज को भी तू, बुझा सा देती है दिन भर की दौड़ धूप , भुला सा देती है

भूले हुओं की यादों को,फिर बुला सा लेती है चहल कदमी में भी मुझ जैसों को, सुला सा लेती है

उलझे हुए सवालो को, सुलझा सा देती है बचपन की किताबों को, फिर खुलवा सा लेती है,

ऐ शाम तू कैसी सी है